कमजोर पश्चिमी विक्षोभ (WD) और पूर्वी हवाओं के मेल से राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश व बुंदेलखंड में कही हल्की कही तेज बारिश हो रही है।
आज सुबह हनुमानगढ़, चूरू, अलवर, महेंद्रगढ़, हिसार सहित कई जिलों में बूंदाबांदी दर्ज की गई है। दिन में दोबारा उत्तर-पूर्वी राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी यूपी में हल्की बारिश संभव है।
कृत्रिम बारिश पर एक नजर:
आज 21 अक्टूबर को उत्तर भारत, खासकर उत्तर राजस्थान, पश्चिमी हरियाणा, बुंदेलखंड, मध्यप्रदेश और आसपास के इलाकों में जो हल्की बारिश या बूंदाबांदी देखने को मिल रही है, उसे लेकर कई लोग यह मान रहे हैं कि यह “कृत्रिम वर्षा” (Artificial Rain) का नतीजा है। लेकिन सच्चाई यह है कि यह बारिश किसी कृत्रिम प्रयोग से नहीं, बल्कि एक कमजोर पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance – WD) के प्रभाव से हो रही है।
दिल्ली सरकार ने दीपावली के पहले भी कृत्रिम वर्षा की योजना बनाई थी ताकि प्रदूषण को कम किया जा सके, लेकिन उस समय आसमान में बादल मौजूद नहीं थे, इसलिए वह योजना लागू नहीं हो सकी।बिना बादलों के कृत्रिम वर्षा वैज्ञानिक रूप से असंभव है।
बाद में सरकार ने दिवाली के बाद भी कृत्रिम बारिश करवाने का प्लान बनाया है। अभी तक यह बारिश और बादल दिल्ली नहीं पहुंचे हैं। राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश में इसलिए आज जो बारिश हो रही है, वह पूरी तरह प्राकृतिक WD से जुड़ी मौसमी प्रक्रिया है, न कि किसी कृत्रिम प्रयोग का असर।
- कृत्रिम वर्षा क्या है?
कृत्रिम वर्षा या Cloud Seeding का मतलब होता है, प्राकृतिक बादलों में छोटे-छोटे कण छोड़ना ताकि उनमें मौजूद नमी से बारिश की बूंदें बन सकें। इसे “Rain Enhancement Technique” भी कहा जाता है। इसका लक्ष्य यह नहीं होता कि आसमान से नए बादल बनाए जाएं, बल्कि जो बादल पहले से बने हुए हैं, उनसे थोड़ी सी ज्यादा बारिश कराई जाए। - तकनीक का काम:
आसमान में बादल लाखों करोड़ों छोटे-छोटे पानी की बूंदों और बर्फ़ के क्रिस्टल्स से बने होते हैं। लेकिन अक्सर इनमें मौजूद नमी बारिश बनने के लिए पर्याप्त नहीं होती।
वैज्ञानिक द्वारा भेजे गए विमान या रॉकेट से इनमें Silver Iodide, Sodium Chloride (नमक) या Dry Ice (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) के कण छोड़ते हैं। इन कणों को “condensation nuclei” कहा जाता है, यानी वो केंद्र जहाँ पानी की भाप जमा होकर बूंद बनती है।
जैसे समझिए: मान लीजिए, एक बादल में करोड़ों सूक्ष्म जलकण हैं लेकिन उनमें से कोई भी इतना बड़ा नहीं है कि ज़मीन तक बारिश बनकर गिर सके। अब जब मौसम विभाग द्वारा हवाई जहाज या रॉकेट से बादलो में Silver Iodide के कण डालते हैं, तो वह नाभिक (nucleus) का काम करता है।
जलवाष्प इन कणों के चारों ओर जमा होने लगती है और धीरे-धीरे भारी होकर नीचे गिरती है। यानी यह तकनीक बादल की प्राकृतिक प्रक्रिया को तेज कर देती है। न कि नए बादल बनाती है।
- कृत्रिम बारिश की सफलता:
01) कृत्रिम वर्षा तभी संभव है जब आसमान में पहले से नमी वाले बादल मौजूद हों। जैसे जब कोई पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) उत्तर भारत पर मौजूद हो और उससे बादलवाही बन रही हो। या जब बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से निम्न दबाव क्षेत्र (Low Pressure Area / Depression) बन कर आया हो।
2) जब हवा में नमी 60% से अधिक हो और तापमान अपेक्षाकृत कम हो।
3) जब बादल ऊँचाई में 2–5 किमी तक विकसित हो चुके हों।
अगर आसमान साफ है, तो चाहे कितनी भी कोशिश कर लो, कोई बारिश नहीं होगी, क्योंकि बिना सिस्टम के बादल हैं ही नहीं जिन पर प्रयोग किया जा सके।
- कितनी बारिश कराई जा सकती है?
कृत्रिम वर्षा सीमित मात्रा में ही बारिश करा सकती है। औसतन यह तकनीक 5 से 20mm तक अतिरिक्त बारिश ला सकती है।
यानी अगर प्राकृतिक रूप से 10 mm बारिश होनी थी, तो कृत्रिम बारिश से यह 12–15 mm तक बढ़ सकती है। कुछ मामलों में केवल हल्की बूंदाबांदी या धूल भिगोने जितनी बारिश होती है।
आमतौर पर 15/20 मिनट तक कृत्रिम बारिश करवाई जा सकती है। अगर बादल ज्यादा बड़े हैं तो 2 घंटे तक हल्की से मध्यम वर्षा हो सकती है।
- कृत्रिम बारिश का प्रभाव:
क्लाउड सीडिंग का असर सीमित दायरे में रहता है। एक विमान एक बार में लगभग 50/100 km क्षेत्र के लबे क्षेत्र को कवर कर सकता है। न कि एक घेरे में। इसका असर उसी क्षेत्र तक सीमित रहता है जहाँ बादल मौजूद हैं। जिससे आस-पास के इलाकों में हल्की बारिश हो जाती है, लेकिन बहुत दूर तक असर नहीं जाता।
जैसे अगर दिल्ली-NCR के ऊपर बादल हैं, तो क्लाउड सीडिंग से दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद तक हल्की बारिश संभव है, लेकिन हरियाणा के फरीदाबाद, गुड़गांव या यूपी के अलीगढ़ , मेरठ, आगरा, बुलंदशहर तक के दूर इलाकों तक इसका असर नहीं पहुंचेगा।
- क्लाउड सीडिंग बहुत महंगी प्रक्रिया है। एक विमान उड़ान (1–2 घंटे) की औसत लागत ₹6 से ₹10 लाख होती है। एक छोटे शहर जैसे दिल्ली में कृत्रिम वर्षा प्रयोग का खर्च ₹50 लाख से ₹1 करोड़ तक जा सकता है। प्रति वर्ग किलोमीटर लागत ₹10,000 से ₹20,000/km² तक आती है।यानी अगर बादल न हों, तो यह पूरा पैसा व्यर्थ चला जाता है।
- सरकार चाहे तो भी इसे हर जगह नहीं करा सकती क्योंकि यह तकनीक बहुत महंगी है।
हर जगह बादलों की स्थिति अलग होती है, एक जगह सफल होने का मतलब दूसरी जगह भी सफलता नहीं है। बड़े पैमाने पर ऑपरेशन के लिए सैकड़ों विमान, हज़ारों लीटर रसायन और भारी संसाधन चाहिए।
भारत जैसे विशाल देश में इसे एक साथ करना व्यावहारिक नहीं है। इसलिए यह तकनीक सिर्फ सीमित इलाकों में पायलट प्रोजेक्ट या शोध प्रयोग के रूप में की जाती है जैसे दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए, राजस्थान के डैम वाले इलाको में पानी की आवक बढ़ाने के लिए जैसे जयपुर, अजमेर, कोटा, उदयपुर, बांसवाड़ा आदि जिले में, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र या तमिलनाडु में।
- किसानों बंधुओं को इस बारिश से डरने की जरूरत नहीं है। कई बार अफवाह फैलती है कि सरकार जानबूझकर कृत्रिम बारिश से फसलों को नुकसान पहुंचाना चाहती है।
क्योंकि कृत्रिम बारिश से “भारी बारिश” या “लगातार चलने वाली ” बारिश नहीं होती। यह केवल थोड़ी अतिरिक्त नमी छोड़ती है, जो फसलों के लिए हानिकारक नहीं होती।
उपयोग किए गए रसायन (Silver Iodide, Salt) की मात्रा बहुत कम होती है और यह मिट्टी या पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाते। साथ में सरकार इस तकनीक को वैज्ञानिक परीक्षण के रूप में करती है, न कि खेती को नुकसान पहुँचाने के लिए।वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि Silver Iodide जैसी रसायनों की मात्रा इतनी कम होती है कि उनका कोई नुकसानदायक प्रभाव नहीं होता। यह मिट्टी या भूजल में किसी हानिकारक स्तर तक नहीं पहुँचता। हालांकि पर्यावरण विभाग हर प्रयोग के बाद निगरानी जरूर करता है।
मान लीजिए किसी जिले में प्रदूषण या धूल बहुत है। अगर बादल बने हुए हैं, तो क्लाउड सीडिंग से हल्की बारिश कराकर हवा साफ की जाती है। यह फसलों के लिए भी फायदेमंद होती है क्योंकि मिट्टी की ऊपरी परत में नमी आ जाती है। लेकिन अगर कटाई का समय चल रहा है तब कुछ समस्या आ सकती है मगर बड़ी दिक्कत कृत्रिम बारिश से नहीं होती।
- कृत्रिम बारिश का सफलता दर (Success Rate)
विश्व स्तर पर क्लाउड सीडिंग की सफलता दर 30–40% मानी जाती है। कई बार प्रयोग के बाद भी बारिश नहीं होती क्योंकि बादल में नमी या ऊँचाई पर्याप्त नहीं होती। इसलिए यह प्रयोग हर बार सफल नहीं होता।
कृत्रिम वर्षा कोई “जादू” नहीं है। यह एक वैज्ञानिक प्रयास है।
यह प्रकृति की सहायता से काम करती है, उसके विरोध में नहीं। अगर आसमान साफ है, तो सरकार चाहे जितना पैसा खर्च कर दे, बारिश नहीं कर सकती।
इसलिए किसान बंधु कृत्रिम बारिश से घबराने की जरूरत नहीं है, इसे एक वैज्ञानिक अध्ययन मात्र मानें। यह भविष्य में सूखे क्षेत्रों और प्रदूषण से लड़ने का उपयोगी उपाय बन सकती है।